कार्ल मार्क्स के धर्म और आध्यात्मिकता पर विचार
“सामाजिक प्रगति को महिला की सामाजिक स्थिति से मापा जा सकता है।”
“धर्म जनता की अफीम है।”
“जीवन चेतना से निर्धारित नहीं होता, बल्कि चेतना जीवन से निर्धारित होती है।”
“बिना आवश्यकता के कोई उत्पादन नहीं। लेकिन उपभोग आवश्यकता को पुन: उत्पन्न करता है।”
“लोकतंत्र समाजवाद का मार्ग है।”
“अपने रास्ते पर चलो, चाहे लोग कुछ भी कहें।”
“काम सिर्फ दुनिया को समझना नहीं है बल्कि इसे बदलना है।”
कैसे अपने सपने कैसे साकार करें: जिंदगी में कामयाब होने के तरीके
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